शनिवार, 20 दिसंबर 2008

वेंगसरकर के भोंकने के बाद ही

जब आमदनी हो कम,खर्च हो ज्यादा।

जब भैंस दूध दे कम ,चारा खाये ज्यादा ।

जब खुसी हो कम ,आँसू हो ज्यादा ।

जब दमखम वाले नेता हों कम आतंकवादी हों ज्यादा ।

सिलिण्डर हो कम ,लाईन हो ज्यादा ।

अटल जी हों कम, अंतुले हो ज्यादा ।

फिर भी हौसला रखें क्योंकि ,

कितनी भी काली रात हो सवेरा अवश्य होता है ।

9999 गलती के बाद ही ऐडीसन बल्ब बनाते हैं ।

दसवीं फेल होने के बाद ही आईनस्टीन जैसे वैज्ञानिक बनते हैं ।

वेंगसरकर के भोंकने के बाद ही द्रविड़ सतक बनाते हैं ।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

आतंकवादी ,आम आदमी से बेहतर

दो महीने पहले मैने भी बैंक मे खाताव एटीएम खुलवाने के लिये बैंक मेंफार्म भरा था।कलर्क ने १२-१५ दिन बाद बुलाया मै दुबारा गया तो मुझेफिर कुछ दिन बाद आने को कहागया।मजबूरी थी सो मुझे फिर जनापडा़ ।इस बार मुझे कहा गया कि आपका फार्म खो गया है फिर सेफार्म भरना पडेगा।मैने दुबारा फार्मभरा।फिर मुझे कभी यहां कभी वहांनचाया गया ।मेरे भी सब्र का बाँधटूट गया मैंने भी कलर्क को गालीदी व बाहर निकलो भिर बताताहू वाला पुराना डायलाग मारा।और वापसआ गया।
आज पेपर पढ़ कर मुझे बहुतदुख हो रहा है कि मै एक आमआदमी था इसलिये मुझे खाताखुलाने में इतनी परेशानी हुईजबकि मुंम्बई में पकडे गयेआतंकवादियो के पास क्रेडिट कार्डमास्टर कार्ड सब था।