मंगलवार, 25 मई 2010
देश बड़ा या परिवार
"मुझे कभी कभी लगता है कि नौजवानों को ये ज़िम्मेदारी संभालनी चाहिए. जब भी पार्टी ये फ़ैसला करेगी मैं ख़ुशी से कुर्सी छोड़ दूँगा." -मनमोहन सिह
राहुल गांधी के राजतिलक का सवाल पर उन्होंने फिर वही इम्प्रेशन दिया जिसे वह अब तक ख़त्म करने में विफल रहे हैं और वह यह है कि इस कुर्सी पर वे सिर्फ़ उस वक़्त तक बैठे हैं जब तक राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं हो जाते.
क्या लाचारी है?जिस देश का प्रधान मंत्री इतना लाचार हो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है|
कुर्सी कुछ भी करा सकती है. मतलब साफ़ है कि जिस तरह दिवंगत सीताराम केसरी के साथ हुआ, वैसा मनमोहन सिंहजी के साथ न हो इसलिए वो पहले ही कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार हैं. लगता है मनमोहन सिंह का ये सपना जल्द पूरा होने वाला है. पर कौन जानता है कि कांग्रेस को अगली बार ये गद्दी मिले कि नहीं.
जब तक राहुल गाँधी जैसे लोगों का देश की सबसे ऊंची कुर्सी के लिए सिर्फ़ इसलिए हकदार होना नहीं रुकता कि वो अपने मुंह में चाँदी की चम्मच लेकर पैदा हुए, मुझे नहीं लगेगा कि मैं एक स्वतंत्र गणतंत्र में रह रहा हूँ. मैं नहीं कहता कि उनमें प्रतिभा नहीं है, पर मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे स्कूल का चपरासी का बेटा जो जेएनयू से पढ़कर प्रोफेसर बना है, उनसे ज्यादा मेधावी था और है - तो वो क्यूँ नहीं?
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1 टिप्पणी:
desh se bada kuch nahee ho sakata
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